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आज सडकों पर / दुष्यंत कुमार

47 bytes removed, 06:32, 1 अप्रैल 2013
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}}
<poem> {{KKCatKavita}}आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,<br>पर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।<br><br>
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,<br>आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।<br><br>
अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,<br>यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।<br><br>
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,<br>कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।<br><br>
ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,<br>रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।<br><br>
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई, <br>राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।<br><br>
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