Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |अंगारों पर ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
आँसुओं को बवाल समझा गया
कब यहाँ दिल का हाल समझा गया

अपने लोगों की थीं करामातें
जिनको दुश्मन की चाल समझा गया

वो ख़फ़ा हैं कि घूसखोरी को
कैसे फोकट का माल समझा गया

हम जो सम्हले तो उँगलियाँ उट्ठीं
गिर पड़े तो कमाल समझा गया

साध ली फिर जवाब पर चुप्पी
कैसे समझें सवाल समझा गया

काम आए ये फ़ालतू काग़ज़
मेरी पॉकिट में माल समझा गया

तेरे बिन दिन सदी से गुज़रे हैं
लम्हे लम्हे को साल समझा गया
</poem>
338
edits