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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
छल किया है छल मिलेगा आपको
और क्या प्रतिफल मिलेगा आपको

अब कहाँ वो आपसी सद्भावना
हर कहीं दंगल मिलेगा आपको

मित्र, ये नदिया है भ्रष्टाचार की
कैसे इसका तल मिलेगा आपको

हर कहीं, हर सिम्त दौलत के लिए
आदमी पागल मिलेगा आपको

जिसको भी दुखड़ा सुनाएंगे वही
आँख से ओझल मिलेगा आपको

आप ही बस वक़्त के मारे नहीं
हर कोई घायल मिलेगा आपको

दुख में पढ़िएगा ‘अकेला’ की ग़ज़ल
देखिएगा बल मिलेगा आपको
</poem>
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