Changes

कबीर दोहावली / पृष्ठ ३

1,340 bytes removed, 06:50, 6 अप्रैल 2013
|सारणी=दोहावली / कबीर
}}
<poem>
ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत ।
प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत ॥ 201 ॥
ते दिन गये अकारथीतीर तुपक से जो लड़े, संगत भई सो तो शूर संत होय <BR/>प्रेम बिना पशु जीवना, माया तजि भक्ति बिना भगवंत करे, सूर कहावै सोय 201 202 <BR/><BR/>
तीर तुपक से जो लड़ेतन को जोगी सब करे, सो तो शूर न होय मन को बिरला कोय <BR/>माया तजि भक्ति करेसहजै सब विधि पाइये, सूर कहावै सोय जो मन जोगी होय 202 203 <BR/><BR/>
तन को जोगी सब करेतब लग तारा जगमगे, मन को बिरला कोय जब लग उगे नसूर <BR/>सहजै सब विधि पाइयेतब लग जीव जग कर्मवश, जो मन जोगी होय जब लग ज्ञान ना पूर 203 204 <BR/><BR/>
तब लग तारा जगमगेदुर्लभ मानुष जनम है, जब लग उगे नसूर देह न बारम्बार <BR/>तब लग जीव जग कर्मवशतरुवर ज्यों पत्ती झड़े, जब लग ज्ञान ना पूर बहुरि न लागे डार 204 205 <BR/><BR/>
दुर्लभ मानुष जनम हैदस द्वारे का पींजरा, देह न बारम्बार तामें पंछी मौन <BR/>तरुवर ज्यों पत्ती झड़ेरहे को अचरज भयौ, बहुरि न लागे डार गये अचम्भा कौन 205 206 <BR/><BR/>
दस द्वारे का पींजराधीरे-धीरे रे मना, तामें पंछी मौन धीरे सब कुछ होय <BR/>रहे को अचरज भयौमाली सीचें सौ घड़ा, गये अचम्भा कौन ॠतु आए फल होय 206 207 <BR/><BR/>
धीरे-धीरे रे मनान्हाये धोये क्या हुआ, धीरे सब कुछ होय जो मन मैल न जाय <BR/>माली सीचें सौ घड़ामीन सदा जल में रहै, ॠतु आए फल होय धोये बास न जाय 207 208 <BR/><BR/>
न्हाये धोये क्या हुआपाँच पहर धन्धे गया, जो मन मैल न जाय तीन पहर गया सोय <BR/>मीन सदा जल में रहैएक पहर भी नाम बीन, धोये बास न जाय मुक्ति कैसे होय 208 209 <BR/><BR/>
पाँच पहर धन्धे गयापोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, तीन पहर गया सोय पंडित भया न कोय <BR/>एक पहर भी नाम बीनढ़ाई आखर प्रेम का, मुक्ति कैसे पढ़ै सो पंड़ित होय ॥ 209 210 <BR/><BR/>
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआपानी केरा बुदबुदा, पंडित भया न कोय अस मानस की जात <BR/>ढ़ाई आखर प्रेम कादेखत ही छिप जाएगा, पढ़ै सो पंड़ित होय ज्यों सारा परभात 210 211 <BR/><BR/>
पानी केरा बुदबुदापाहन पूजे हरि मिलें, अस मानस की जात तो मैं पूजौं पहार <BR/>देखत ही छिप जाएगायाते ये चक्की भली, ज्यों सारा परभात पीस खाय संसार 211 212 <BR/><BR/>
पाहन पूजे हरि मिलेंपत्ता बोला वृक्ष से, तो मैं पूजौं पहार सुनो वृक्ष बनराय <BR/>याते ये चक्की भलीअब के बिछुड़े ना मिले, पीस खाय संसार दूर पड़ेंगे जाय 212 213 <BR/><BR/>
पत्ता बोला वृक्ष सेप्रेमभाव एक चाहिए, सुनो वृक्ष बनराय भेष अनेक बजाय <BR/>अब के बिछुड़े ना मिलेचाहे घर में बास कर, दूर पड़ेंगे चाहे बन मे जाय ॥ 213 214 <BR/><BR/>
प्रेमभाव एक चाहिएबन्धे को बँनधा मिले, भेष अनेक बजाय छूटे कौन उपाय <BR/>चाहे घर में बास करसंगति निरबन्ध की, चाहे बन मे जाय पल में लेय छुड़ाय 214 215 <BR/><BR/>
बन्धे को बँनधा मिलेबूँद पड़ी जो समुद्र में, छूटे कौन उपाय ताहि जाने सब कोय <BR/>कर संगति निरबन्ध की, पल समुद्र समाना बूँद में लेय छुड़ाय , बूझै बिरला कोय 215 216 <BR/><BR/>
बूँद पड़ी जो समुद्र मेंबाहर क्या दिखराइये, ताहि जाने सब कोय अन्तर जपिए राम <BR/>समुद्र समाना बूँद मेंकहा काज संसार से, बूझै बिरला कोय तुझे धनी से काम 216 217 <BR/><BR/>
बाहर क्या दिखराइयेबानी से पहचानिए, अन्तर जपिए राम साम चोर की घात <BR/>कहा काज संसार अन्दर की करनी सेसब, तुझे धनी से काम निकले मुँह की बात 217 218 <BR/><BR/>
बानी से पहचानिएबड़ा हुआ सो क्या हुआ, साम चोर की घात जैसे पेड़ खजूर <BR/>अन्दर की करनी से सबपँछी को छाया नहीं, निकले मुँह की बात फल लागे अति दूर 218 219 <BR/><BR/>
बड़ा हुआ सो क्या हुआमूँड़ मुड़ाये हरि मिले, जैसे पेड़ खजूर सब कोई लेय मुड़ाय <BR/>पँछी को छाया नहींबार-बार के मुड़ते, फल लागे अति दूर भेड़ न बैकुण्ठ जाय 219 220 <BR/><BR/>
मूँड़ मुड़ाये हरि मिलेमाया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब कोई लेय मुड़ाय देश <BR/>बार-बार के मुड़तेजा ठग ने ठगनी ठगो, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ता ठग को आदेश 220 221 <BR/><BR/>
माया तो ठगनी बनीभज दीना कहूँ और ही, ठगत फिरे सब देश तन साधुन के संग <BR/>जा ठग ने ठगनी ठगोकहैं कबीर कारी गजी, ता ठग को आदेश कैसे लागे रंग 221 222 <BR/><BR/>
भज दीना कहूँ और हीमाया छाया एक सी, तन साधुन के संग बिरला जाने कोय <BR/>कहैं कबीर कारी गजीभागत के पीछे लगे, कैसे लागे रंग सन्मुख भागे सोय 222 223 <BR/><BR/>
माया छाया एक सीमथुरा भावै द्वारिका, बिरला जाने कोय भावे जो जगन्नाथ <BR/>भागत के पीछे लगेसाधु संग हरि भजन बिनु, सन्मुख भागे सोय कछु न आवे हाथ 223 224 <BR/><BR/>
मथुरा भावै द्वारिकामाली आवत देख के, भावे जो जगन्नाथ कलियान करी पुकार <BR/>साधु संग हरि भजन बिनुफूल-फूल चुन लिए, कछु न आवे हाथ काल हमारी बार 224 225 <BR/><BR/>
माली आवत देख केमैं रोऊँ सब जगत् को, कलियान करी पुकार मोको रोवे न कोय <BR/>फूल-फूल चुन लिएमोको रोवे सोचना, काल हमारी बार जो शब्द बोय की होय 225 226 <BR/><BR/>
मैं रोऊँ सब जगत् कोये तो घर है प्रेम का, मोको रोवे न कोय खाला का घर नाहिं <BR/>मोको रोवे सोचनासीस उतारे भुँई धरे, जो शब्द बोय की होय तब बैठें घर माहिं 226 227 <BR/><BR/>
ये तो घर है प्रेम काया दुनियाँ में आ कर, खाला का घर नाहिं छाँड़ि देय तू ऐंठ <BR/>सीस उतारे भुँई धरेलेना हो सो लेइले, तब बैठें घर माहिं उठी जात है पैंठ 227 228 <BR/><BR/>
या दुनियाँ में आ करराम नाम चीन्हा नहीं, छाँड़ि देय तू ऐंठ कीना पिंजर बास <BR/>लेना हो सो लेइलेनैन न आवे नीदरौं, उठी जात है पैंठ अलग न आवे भास 228 229 <BR/><BR/>
राम नाम चीन्हा नहींरात गंवाई सोय के, कीना पिंजर बास दिवस गंवाया खाय <BR/>नैन न आवे नीदरौंहीरा जन्म अनमोल था, अलग न आवे भास कौंड़ी बदले जाए 229 230 <BR/><BR/>
रात गंवाई सोय केराम बुलावा भेजिया, दिवस गंवाया खाय दिया कबीरा रोय <BR/>हीरा जन्म अनमोल थाजो सुख साधु सगं में, कौंड़ी बदले जाए सो बैकुंठ न होय 230 231 <BR/><BR/>
राम बुलावा भेजियासंगति सों सुख्या ऊपजे, दिया कबीरा रोय कुसंगति सो दुख होय <BR/>जो सुख साधु सगं मेंकह कबीर तहँ जाइये, सो बैकुंठ न साधु संग जहँ होय ॥ 231 232 <BR/><BR/>
संगति सों सुख्या ऊपजेसाहिब तेरी साहिबी, कुसंगति सो दुख होय सब घट रही समाय <BR/>कह कबीर तहँ जाइयेज्यों मेहँदी के पात में, साधु संग जहँ होय लाली रखी न जाय 232 233 <BR/><BR/>
साहिब तेरी साहिबीसाँझ पड़े दिन बीतबै, सब घट रही समाय चकवी दीन्ही रोय <BR/>ज्यों मेहँदी के पात मेंचल चकवा वा देश को, लाली रखी न जाय जहाँ रैन नहिं होय 233 234 <BR/><BR/>
साँझ पड़े दिन बीतबैसंह ही मे सत बाँटे, चकवी दीन्ही रोय रोटी में ते टूक <BR/>चल चकवा वा देश कहे कबीर ता दास को, जहाँ रैन नहिं होय कबहुँ न आवे चूक 234 235 <BR/><BR/>
संह ही मे सत बाँटेसाईं आगे साँच है, रोटी में ते टूक साईं साँच सुहाय <BR/>कहे कबीर ता दास कोचाहे बोले केस रख, कबहुँ न आवे चूक चाहे घौंट मुण्डाय 235 236 <BR/><BR/>
साईं आगे साँच हैलकड़ी कहै लुहार की, साईं साँच सुहाय तू मति जारे मोहिं <BR/>चाहे बोले केस रखएक दिन ऐसा होयगा, चाहे घौंट मुण्डाय मैं जारौंगी तोहि 236 237 <BR/><BR/>
लकड़ी कहै लुहार कीहरिया जाने रुखड़ा, तू मति जारे मोहिं जो पानी का गेह <BR/>एक दिन ऐसा होयगासूखा काठ न जान ही, मैं जारौंगी तोहि केतुउ बूड़ा मेह 237 238 <BR/><BR/>
हरिया जाने रुखड़ा, जो पानी ज्ञान रतन का जतनकर माटी का गेह संसार <BR/>सूखा काठ न जान हीआय कबीर फिर गया, केतुउ बूड़ा मेह फीका है संसार 238 239 <BR/><BR/>
ज्ञान रतन का जतनकर माटी का संसार ॠद्धि सिद्धि माँगो नहीं, माँगो तुम पै येह <BR/>आय कबीर फिर गयानिसि दिन दरशन शाधु को, फीका है संसार प्रभु कबीर कहुँ देह 239 240 <BR/><BR/>
ॠद्धि सिद्धि माँगो नहींक्षमा बड़े न को उचित है, माँगो तुम पै येह छोटे को उत्पात <BR/>निसि दिन दरशन शाधु कोकहा विष्णु का घटि गया, प्रभु कबीर कहुँ देह जो भुगु मारीलात 240 241 <BR/><BR/>
क्षमा बड़े न को उचित हैराम-नाम कै पटं तरै, छोटे को उत्पात देबे कौं कुछ नाहिं <BR/>कहा विष्णु का घटि गयाक्या ले गुर संतोषिए, जो भुगु मारीलात हौंस रही मन माहिं 241 242 <BR/><BR/>
राम-नाम कै पटं तरै, देबे कौं कुछ नाहिं । <BR/>क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ॥ 242 ॥ <BR/><BR/>बलिहारी गुर आपणौ, घौंहाड़ी कै बार । <BR/>जिनि भानिष तैं देवता, करत न लागी बार ॥ 243 ॥ <BR/><BR/>
ना गुरु मिल्या न सिष भया, लालच खेल्या डाव । <BR/>दुन्यू बूड़े धार में, चढ़ि पाथर की नाव ॥ 244 ॥ <BR/><BR/>
सतगुर हम सूं रीझि करि, एक कह्मा कर संग । <BR/>बरस्या बादल प्रेम का, भींजि गया अब अंग ॥ 245 ॥ <BR/><BR/>
कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीष । <BR/>स्वाँग जती का पहरि करि, धरि-धरि माँगे भीष ॥ 246 ॥ <BR/><BR/>
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान । <BR/>सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान ॥ 247 ॥ <BR/><BR/>
तू तू करता तू भया, मुझ में रही न हूँ । <BR/>वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तू ॥ 248 ॥ <BR/><BR/>
राम पियारा छांड़ि करि, करै आन का जाप । <BR/>बेस्या केरा पूतं ज्यूं, कहै कौन सू बाप ॥ 249 ॥ <BR/><BR/>
कबीरा प्रेम न चषिया, चषि न लिया साव । <BR/>सूने घर का पांहुणां, ज्यूं आया त्यूं जाव ॥ 250 ॥ <BR/><BR/>
कबीरा राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ । <BR/>फूटा नग ज्यूं जोड़ि मन, संधे संधि मिलाइ ॥ 251 ॥ <BR/><BR/>
लंबा मारग, दूरिधर, विकट पंथ, बहुमार । <BR/>कहौ संतो, क्यूं पाइये, दुर्लभ हरि-दीदार ॥ 252 ॥ <BR/><BR/>
बिरह-भुवगम तन बसै मंत्र न लागै कोइ । <BR/>राम-बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होइ ॥ 253 ॥ <BR/><BR/>यह तन जालों मसि करों, लिखों राम का नाउं । <BR/>लेखणि करूं करंक की, लिखी-लिखी राम पठाउं ॥ 254 ॥ <BR/><BR/>
अंदेसड़ा न भाजिसीयह तन जालों मसि करों, सदैसो कहियां लिखों राम का नाउं <BR/>के हरि आयां भाजिसीलेखणि करूं करंक की, कैहरि ही पास गयां लिखी-लिखी राम पठाउं 255 254 <BR/><BR/>
इस तन का दीवा करौअंदेसड़ा न भाजिसी, बाती मेल्यूं जीवउं सदैसो कहियां <BR/>लोही सींचो तेल ज्यूंके हरि आयां भाजिसी, कब मुख देख पठिउं कैहरि ही पास गयां 256 255 <BR/><BR/>
अंषड़ियां झाईं पड़ीइस तन का दीवा करौ, पंथ निहारि-निहारि बाती मेल्यूं जीवउं <BR/>जीभड़ियाँ छाला पड़यालोही सींचो तेल ज्यूं, राम पुकारि-पुकारि कब मुख देख पठिउं 257 256 <BR/><BR/>
सब रग तंत रबाब तनअंषड़ियां झाईं पड़ी, बिरह बजावै नित्त पंथ निहारि-निहारि <BR/>और न कोई सुणि सकैजीभड़ियाँ छाला पड़या, कै साईं के चित्त राम पुकारि-पुकारि 258 257 <BR/><BR/>
जो रोऊँ तो बल घटैसब रग तंत रबाब तन, हँसो तो राम रिसाइ बिरह बजावै नित्त <BR/>मन ही माहिं बिसूरणाऔर न कोई सुणि सकै, ज्यूँ घुँण काठहिं खाइ कै साईं के चित्त 259 258 <BR/><BR/>
कबीर हँसणाँ दूरि करिजो रोऊँ तो बल घटै, करि रोवण सौ चित्त हँसो तो राम रिसाइ <BR/>बिन रोयां क्यूं पाइयेमन ही माहिं बिसूरणा, प्रेम पियारा मित्व ज्यूँ घुँण काठहिं खाइ 260 259 <BR/><BR/>
सुखिया सब संसार हैकबीर हँसणाँ दूरि करि, खावै और सोवे करि रोवण सौ चित्त <BR/>दुखिया दास कबीर हैबिन रोयां क्यूं पाइये, जागै अरु रौवे प्रेम पियारा मित्व 261 260 <BR/><BR/>
परबति परबति मैं फिरयासुखिया सब संसार है, नैन गंवाए रोइ खावै और सोवे <BR/>सो बूटी पाऊँ नहींदुखिया दास कबीर है, जातैं जीवनि होइ जागै अरु रौवे 262 261 <BR/><BR/>
पूत पियारौ पिता कौंपरबति परबति मैं फिरया, गौहनि लागो घाइ नैन गंवाए रोइ <BR/>लोभ-मिठाई हाथ देसो बूटी पाऊँ नहीं, आपण गयो भुलाइ जातैं जीवनि होइ 263 262 <BR/><BR/>
हाँसी खैलो हरि मिलैपूत पियारौ पिता कौं, कौण सहै षरसान गौहनि लागो घाइ <BR/> काम क्रोध त्रिष्णं तजैलोभ-मिठाई हाथ दे, तोहि मिलै भगवान आपण गयो भुलाइ 264 263 <BR/><BR/>जा कारणि में ढ़ूँढ़ती, सनमुख मिलिया आइ । <BR/>धन मैली पिव ऊजला, लागि न सकौं पाइ ॥ 265 ॥ <BR/><BR/>
पहुँचेंगे तब कहैगेंहाँसी खैलो हरि मिलै, उमड़ैंगे उस ठांई कौण सहै षरसान <BR/> आजहूं बेरा समंद मैंकाम क्रोध त्रिष्णं तजै, बोलि बिगू पैं काई तोहि मिलै भगवान 266 264 ॥ जा कारणि में ढ़ूँढ़ती, सनमुख मिलिया आइ । धन मैली पिव ऊजला, लागि न सकौं पाइ ॥ 265 <BR/><BR/>
दीठा है तो कस कहूंपहुँचेंगे तब कहैगें, कह्मा न को पतियाइ उमड़ैंगे उस ठांई <BR/>हरि जैसा है तैसा रहोआजहूं बेरा समंद मैं, तू हरिष-हरिष गुण गाइ बोलि बिगू पैं काई 267 266 <BR/><BR/>
भारी कहौं दीठा है तो बहुडरौं, हलका कस कहूं तौ झूठ , कह्मा न को पतियाइ <BR/>मैं का जाणी राम कूं नैनूं कबहूं न दीठ हरि जैसा है तैसा रहो, तू हरिष-हरिष गुण गाइ 268 267 <BR/><BR/>
कबीर एक न जाण्यांभारी कहौं तो बहुडरौं, तो बहु जाण्यां क्या होइ हलका कहूं तौ झूठ <BR/>एक तै सब होत है, सब तैं एक मैं का जाणी राम कूं नैनूं कबहूं होइ दीठ 269 268 <BR/><BR/>
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया एक जाइ जाण्यां, तो बहु जाण्यां क्या होइ <BR/>नैनूं रमैया रमि रह्माएक तै सब होत है, दूजा कहाँ समाइ सब तैं एक न होइ 270 269 <BR/><BR/>
कबीर कूता राम कारेख स्यंदूर की, मुतिया मेरा नाउं काजल दिया न जाइ <BR/>गले राम की जेवड़ीनैनूं रमैया रमि रह्मा, जित खैंचे तित जाउं दूजा कहाँ समाइ 271 270 <BR/><BR/>
कबीर कलिजुग आइ करिकूता राम का, कीये बहुत जो भीत मुतिया मेरा नाउं <BR/>जिन दिल बांध्या एक सूंगले राम की जेवड़ी, ते सुख सोवै निचींत जित खैंचे तित जाउं 272 271 <BR/><BR/>
जब लग भगहित सकामताकबीर कलिजुग आइ करि, सब लग निर्फल सेव कीये बहुत जो भीत <BR/>कहै कबीर वै क्यूँ मिलै निह्कामी निज देव जिन दिल बांध्या एक सूं, ते सुख सोवै निचींत 273 272 <BR/><BR/>
पतिबरता मैली भलीजब लग भगहित सकामता, गले कांच को पोत सब लग निर्फल सेव <BR/>सब सखियन में यों दिपै, ज्यों रवि ससि को जोत कहै कबीर वै क्यूँ मिलै निह्कामी निज देव 274 273 <BR/><BR/>
कामी अभी न भावईपतिबरता मैली भली, विष ही कौं ले सोधि गले कांच को पोत <BR/>कुबुध्दि न जीव कीसब सखियन में यों दिपै, भावै स्यंभ रहौ प्रमोथि ज्यों रवि ससि को जोत 275 274 <BR/><BR/>भगति बिगाड़ी कामियां, इन्द्री केरै स्वादि । <BR/>हीरा खोया हाथ थैं, जनम गँवाया बादि ॥ 276 ॥ <BR/><BR/>
परनारी का राचणौकामी अभी न भावई, जिसकी लहसण की खानि विष ही कौं ले सोधि <BR/>खूणैं बेसिर खाइयकुबुध्दि न जीव की, परगट होइ दिवानि भावै स्यंभ रहौ प्रमोथि 277 275 <BR/><BR/>
परनारी राता फिरैंभगति बिगाड़ी कामियां, चोरी बिढ़िता खाहिं इन्द्री केरै स्वादि <BR/>दिवस चारि सरसा रहैहीरा खोया हाथ थैं, अति समूला जाहिं जनम गँवाया बादि 288 276 <BR/><BR/>
ग्यानी मूल गँवाइयापरनारी का राचणौ, आपण भये करना जिसकी लहसण की खानि <BR/> ताथैं संसारी भलाखूणैं बेसिर खाइय, मन मैं रहै डरना परगट होइ दिवानि 289 277 <BR/><BR/>
कामी लज्जा ना करैपरनारी राता फिरैं, न माहें अहिलाद चोरी बिढ़िता खाहिं <BR/>नींद न माँगै साँथरादिवस चारि सरसा रहै, भूख न माँगे स्वाद अति समूला जाहिं 290 288 <BR/><BR/>
कलि का स्वामी लोभियाग्यानी मूल गँवाइया, पीतलि घरी खटाइ आपण भये करना <BR/> राज-दुबारा यौं फिरैताथैं संसारी भला, ज्यँ हरिहाई गाइ मन मैं रहै डरना 291 289 <BR/><BR/>
स्वामी हूवा सीतकाकामी लज्जा ना करै, पैलाकार पचास न माहें अहिलाद <BR/>राम-नाम काठें रह्मानींद न माँगै साँथरा, करै सिषां की आंस भूख न माँगे स्वाद 292 290 <BR/><BR/>
इहि उदर के कारणेकलि का स्वामी लोभिया, जग पाच्यो निस जाम पीतलि घरी खटाइ <BR/>स्वामीराज-पणौ जो सिरि चढ़योदुबारा यौं फिरै, सिर यो न एको काम ज्यँ हरिहाई गाइ 293 291 <BR/><BR/>
ब्राह्म्ण गुरु जगत् कास्वामी हूवा सीतका, साधू का गुरु नाहिं पैलाकार पचास <BR/>उरझिराम-पुरझि करि भरि नाम काठें रह्मा, चारिउं बेदा मांहि करै सिषां की आंस 294 292 <BR/><BR/>
कबीर कलि खोटी भईइहि उदर के कारणे, मुनियर मिलै न कोइ जग पाच्यो निस जाम <BR/>लालच लोभी मसकरास्वामी-पणौ जो सिरि चढ़यो, तिनकूँ आदर होइ सिर यो न एको काम 295 293 <BR/><BR/>
कलि ब्राह्म्ण गुरु जगत् का स्वमी लोभिया, मनसा घरी बधाई साधू का गुरु नाहिं <BR/>दैंहि पईसा ब्याज़ कोउरझि-पुरझि करि भरि रह्मा, लेखां करता जाई ॥ 296 ॥ <BR/><BR/>कबीर इस संसार कौ, समझाऊँ कै बार । <BR/>पूँछ जो पकड़ै भेड़ की उतर या चाहे पार चारिउं बेदा मांहि 297 294 <BR/><BR/>
तीरथ करि-करि जग मुवाकबीर कलि खोटी भई, डूंधै पाणी न्हाइ मुनियर मिलै न कोइ <BR/>रामहि राम जपतंडांलालच लोभी मसकरा, काल घसीटया जाइ तिनकूँ आदर होइ 298 295 <BR/><BR/>
चतुराई सूवै पढ़ीकलि का स्वमी लोभिया, सोइ पंजर मांहि मनसा घरी बधाई <BR/>फिरि प्रमोधै आन कौंदैंहि पईसा ब्याज़ को, आपण समझे नाहिं लेखां करता जाई 299 296 <BR/><BR/>
कबीर इस संसार कौ, समझाऊँ कै बार । पूँछ जो पकड़ै भेड़ की उतर या चाहे पार ॥ 297 ॥  तीरथ करि-करि जग मुवा, डूंधै पाणी न्हाइ । रामहि राम जपतंडां, काल घसीटया जाइ ॥ 298 ॥  चतुराई सूवै पढ़ी, सोइ पंजर मांहि । फिरि प्रमोधै आन कौं, आपण समझे नाहिं ॥ 299 ॥  कबीर मन फूल्या फिरै, करता हूँ मैं घ्रंम । <BR/>कोटि क्रम सिरि ले चल्या, चेत न देखै भ्रम ॥ 300 ॥ <BR/><BR/>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits