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08:28, 8 अप्रैल 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामकृष्ण दीक्षित “विश्व”
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किरण डूबाती तंम गहराती तारो का आंचल लहराती
आई संध्या हो-------- आई संध्या
विन्ध्याचल की ऊँची नीची पहाडियों पर ढोल बजे
नाच रहे है ताक धिनाधिन खुश गोंडो के गोल सजे
कुटकी की पेज१ बने माहुर के दोना
गोंडा गोंडी ब्याह करे लेना न देना
होए भादों में बोले परेना२
होए भादों में बोले परेना (विध्य लोक धुन )
छम छमाती सौ बल खाती धरती का आंचल लहराती
आई संध्या------------ आई संध्या
किरण डूबाती तंम गहराती तारो का आंचल लहराती
आई संध्या------------ आई संध्या
रेवा तट पर उतरी संध्या उड़कर दूर सतपुड़ा से
मस्त मगन मछुए मल्लाहे गाते अपनी नौका खे
हैया हो हो हैया हो धन्य नरबदा मैया हो
नदिया पार बालम को बंगला टिमके जहा तरिइया हो (ढमराई)
दिए जलाती चाँद बुलाती सुधियों के बादल बिखराती आई संध्या
किरण डूबाती तंम गहराती तारो का आंचल लहराती आई संध्या
लौटे चरवाहे किसान सब झोपडीयो की छावो में
गूंजी चंग हुड़क बांसुरियो पर ताने चौपालों में
काली बदरिया बहन हमर कौंधा३ बीरन४ लगे हमार
आज बरस जा मोरी कंनबज में कंता एक रैन रहबार (आल्हा)
नैन मिलाती रस छलकाती जंगल में मंगल बन छाती आई संध्या
किरण डूबाती तंम गहराती तारो का आंचल लहराती आई संध्या
१ एक तरह की शराब जो चावल से बनती है
२ एक पक्षी जो सिर्फ भादो में बोलता है
३ बिजली
४ भाई
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