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16:58, 9 अप्रैल 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जावेद अख़्तर
|संग्रह=
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<poem>
सो गया, ये जहाँ, सो गया आसमां
सो गयीं हैं सारी मंज़िलें ,सो गया है रस्ता
रात आई तो वो जिनके घर थे, वो घर को गये, सो गये
रात आई तो हम जैसे आवारा फिर निकले, राहों में और खो गये
इस गली, उस गली, इस नगर, उस नगर
जाएँ भी तो कहाँ, जाना चाहें अगर
सो गयीं हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रस्ता
कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी कहो
हो पास तो ऐसे चुप न रहो
हम पास भी हैं, और दूर भी हैं
आज़ाद भी हैं, मजबूर भी हैं
क्यों प्यार का मौसम बीत गया
क्यों हम से ज़माना जीत गया
हर घड़ी मेरा दिल गम के घेरे में है
जिंदगी दूर तक अब अंधेरे में है
सो गयीं हैं सारी मंज़िलें सो गया है रस्ता
फिल्म- तेज़ाब
</poem>