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जीवन की आपाधापी में / हरिवंशराय बच्चन
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04:43, 12 अप्रैल 2013
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत सी बातों का,
पर मैं
क्रितग्य
कृतज्ञ
उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
डा० जगदीश व्योम
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