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16:58, 12 अप्रैल 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गुलज़ार
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<poem>
रोको मत टोको मत
सोचने दो इन्हें सोचने दो
रोको मत टोको मत
होए टोको मत इन्हें सोचने दो
मुश्किलों के हल खोजने दो
रोको मत टोको मत
निकलने तो दो आसमां से जुड़ेंगे
अरे अंडे के अन्दर ही कैसे उड़ेंगे यार
निकालने दो पाँव जुराबें बहुत हैं
किताबों के बाहर किताबें बहुत हैं
बच्चों के एक विज्ञापन के लिए लिखा जिंगल.
</poem>