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|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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{{KKCatKavita}}<poem>जड़ें कितनी गहरीं हैं<br>आँकोगी कैसे ?<br>फूल से ?<br>फल से?<br>छाया से?<br>उसका पता तो इसी से चलेगा<br>आकाश की कितनी<br>ऊँचाई हमने नापी है,<br>धरती पर कितनी दूर तक<br>बाँहें पसारी हैं।<br><br>
जलहीन,सूखी,पथरीली,<br>ज़मीन पर खड़ा रहकर भी<br>जो हरा है<br>उसी की जड़ें गहरी हैं<br>वही सर्वाधिक प्यार से भरा है।<br><br>
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