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पारदर्शी नील जल में / नामवर सिंह
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08:12, 15 अप्रैल 2013
|रचनाकार= नामवर सिंह
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पारदर्शी नील जल में सिहरते शैवाल
चांद
चाँद
था, हम थे, हिला तुमने दिया भर ताल क्या पता था,
किंतु
किन्तु
, प्यासे को मिलेंगे आज दूर ओठों से, दृगों में संपुटित दो
नाल।
नाल ।
</poem>
अनिल जनविजय
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