फिर सराबों<ref>मृगतृष्णा</ref> के मुसाफिर, बेखबर ही सही
वर्क-दर-वर्क<ref>पन्ना -पन्ना</ref> उड़ बिखरती रही है हस्ती मेरी गम-ए-हस्तीसुकून-ए-सहर<ref>सुबह का चैन</ref> के उसे दहर न सही, गमग़म-ए-दहर<ref>दुनिया के गमका ग़म</ref> ही सही
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