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यादें / पवन कुमार

621 bytes added, 01:27, 26 अप्रैल 2013
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अबबड़ीदुनिया के मैदानबेशऊर हैंतुम्हारी यादेंन दस्तक देती हैंऔर न हीआमद का कोई अंदेशान कोई इशाराऔर न कोई संदेसागाहे--जंग मेंगाहेजब आ ही गई हो तुम,वक्त-बे-वक्त तोदिन-दोपहरकुछ मसअलेहर वक्त हर पहरकुछ नसीहतेंदिल की दहलीज’कुछ फि’करेंपर हौले से पाँव रखती है,कुछ अक़ीदतेंथम-थम के पैरकुछ फ’नउठाती हुई न जानेकुछ शरीअतेंकैसेअपने बटुए किस तरफ’ सेचुपचाप चली आती हैंऔरएक ही पल में रख लो।ये सारी मुहरेंजैसे पूरा साज़ो-सामाँमैंनेबिखरा केऔर तुम्हारी माँ नेभाग जाती हैं,वक्त बड़ी देर तकइस बिखरेअसबाब को ख़र्च करकेख़रीदी हैं।मैंसमेटता रहता हूँसहेज-सहेज केमहफूज जगहोंपर रखता रहता हूँबस यही कहते हुएबड़ी बेशऊर हैंतुम्हारी यादें।
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