{{KKCatNazm}}
<poem>
अबबड़ीदुनिया के मैदानबेशऊर हैंतुम्हारी यादेंन दस्तक देती हैंऔर न हीआमद का कोई अंदेशान कोई इशाराऔर न कोई संदेसागाहे-एब-जंग मेंगाहेजब आ ही गई हो तुम,वक्त-बे-वक्त तोदिन-दोपहरकुछ मसअलेहर वक्त हर पहरकुछ नसीहतेंदिल की दहलीजकुछ फिकरेंपर हौले से पाँव रखती है,कुछ अक़ीदतेंथम-थम के पैरकुछ फनउठाती हुई न जानेकुछ शरीअतेंकैसेअपने बटुए किस तरफ सेचुपचाप चली आती हैंऔरएक ही पल में रख लो।ये सारी मुहरेंजैसे पूरा साज़ो-सामाँमैंनेबिखरा केऔर तुम्हारी माँ नेभाग जाती हैं,वक्त बड़ी देर तकइस बिखरेअसबाब को ख़र्च करकेख़रीदी हैं।मैंसमेटता रहता हूँसहेज-सहेज केमहफूज जगहोंपर रखता रहता हूँबस यही कहते हुएबड़ी बेशऊर हैंतुम्हारी यादें।