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01:07, 1 मई 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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समझेगा दीवाना क्या
बस्ती क्या वीराना क्या
ज़ब्त करो तो बात बने
हर पल ही छलकाना क्या
हार गए तो हार गए
इस में यूँ झल्लाना क्या
दुश्मन को पहचानोगे ?
अपनों को पहचाना क्या
दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
इसका खाली हव्वा है
दुनिया से घबराना क्या
फूलों की सूरत झरिये
पत्तों सा झड़ जाना क्या
किसने कितने घाव दिये
छोडो भी, गिनवाना क्या
'नीरज' सुलझाना सीखो
मुद्दों को उलझाना क्या
</poem>