|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}<poem>आराम से भाई ज़िन्दगी<br>ज़रा आराम से<br>तेज़ी तुम्हारे प्यार की बर्दाशत नहीं होती अब<br>इतना कसकर किया आलिंगन<br>ज़रा ज़्यादा है जर्जर इस शरीर को<br><br>
आराम से भाई ज़िन्दगी<br>ज़रा आराम से<br>तुम्हारे साथ-साथ दौड़ता नहीं फिर सकता अब मैं<br>ऊँची-नीची घाटियों पहाड़ियों तो क्या<br>महल-अटारियों पर भी<br><br>
न रात-भर नौका विहार न खुलकर बात-भर हँसना<br>बतिया सकता हूँ हौले-हल्के बिल्कुल ही पास बैठकर<br><br>
और तुम चाहो तो बहला सकती हो मुझे<br>जब तक अँधेरा है तब तक सब्ज़ बाग दिखलाकर<br><br>
जो हो जाएँगे राख<br>छूकर सवेरे की किरन<br><br>
सुबह हुए जाना है मुझे<br>आराम से भाई ज़िन्दगी<br>ज़रा आराम से ।<br><br>