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उन निगाहों का मोरचा टूटा / ‘अना’ क़ासमी
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13:51, 12 मई 2013
<poem>
उन निगाहों का मोरचा टूटा
क़सरे<
refकिला
ref>किला
</ref>दिल का मुहासरा टूटा
कुछ सलामत नहीं था दुनिया में
रात पलकों पे आ के लेट गयी
और ग़ज़ल का भी क़ाफ़िया<
ref> तुकान्त
refतुकान्त
</ref> टूटा
<poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
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