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उन निगाहों का मोरचा टूटा
क़सरे<refकिलाref>किला</ref>दिल का मुहासरा टूटा
कुछ सलामत नहीं था दुनिया में
रात पलकों पे आ के लेट गयी
और ग़ज़ल का भी क़ाफ़िया<ref> तुकान्तrefतुकान्त</ref> टूटा
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