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07:09, 13 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' कासमी
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<poem>
कोई नहीं किसी का सुनो इस जहान में
जिसको ख़बर है सबकी वो है आसमान में
इसके बग़ैर मिलता नहीं ज़िन्दगी का लुत्फ़
ख़तरे बहुत हैं वैसे तो ऊँची उड़ान में
ऐसे में एहतियात बरतने की बात है
देखो बिरेक टूट न जाये ढलान में
पूरी तरह ये दुनिया किसी को नहीं मिली
कितने निपट गये हैं इसी खींच तान में
मुझसे तेरा वजूद है तुझसे मिरा वक़ार
हीरा है तू तो देख, तिरा कद्रदान मैं
मांगे के पर और उस पे भी लिल्लाह ये गुरूर
ये पर बिखर भी सकते हैं ऊँची उड़ान में
पिघले नहीं जनाब ज़बां मेरी घिस गयी
कब तक क़सीदे पढ़ता रहूं तेरी शान में
क़ाबुल में सिर्फ़ घोड़े ही होते नहीं हैं दोस्त
कुछ दूसरी सिफत के भी हैं ख़ानदान में
यकजहती की मिसाल ज़मीं पर हमीं से है
हो देखना तो आईये हिन्दोस्तान में
</poem>