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यह कविता यहां से आरंभ होती है, यह एक भ्रम है। आरंभ इसलिए भ्रम है कि अंत किसी का कहीं भी नहीं होता है, और जहां कहीं भी अंत होता है वहीं से फिर एक आरंभ होता है। ऐसे में हर आरंभ में किसी अंत का भविष्य समाहित होता है। इस कविता के अंत के विषय में मैं नहीं जानता, या ऐसा भी लिखा जा सकता है कि इसका अंत कहीं नहीं होगा क्यों कि इसका आरंभ मुझसे बहुत पहले मेरे पूर्वजों ने किया था। जब वे आरंभ कर रहे थे तब वे नहीं जानते थे कि यह यात्रा कहां कहां से कहां तक पहुंचेगी। हम में से कोई कहां जानता है आने वाले कल के विषय में। आज बात कर सकते हैं बीते कल की। कल-कल की इस समय नदी हम भ्रम में रहते हैं कि आगे बढ़ रहे हैं, हम आगे बढ़ते नहीं हमें वहां ले जाया जाता है। हम अकेले कहीं नहीं जाते, जाते है साथ-साथ किसी समय के। समय से बाहर हम कुछ नहीं कर सकते। हम जानते हैं हमारे पूर्वजों के बारे में कि जिनको हमने जलाया था। अपने जीवन में वे हमारे लिए जले या फिर दफन होते रहे थे खुशियों के लिए। हमारे पूर्वजों की परंपराओं से मुक्त नहीं हो सकते हम। करते हैं हम समय के साथ युद्ध। हमारे पूर्वजों ने भी किए थे युद्ध, जो युद्ध में मारे गए उन्हें चील, कव्वों और गीधों ने भोजन बनाया, तब भी वे हमारे संसार से कहीं गए नहीं। हमारी दुनिया से किसी को छुटकारा नहीं मिलता। पूर्वजों को हम रखते हैं हमारी स्मृतियों में और हमारे आस-पास, हमारे साथ-साथ...। जो पहली बार वह पिता था मेरा। उसने खोजा मेरी मां को फिर कहीं नहीं गया। सांस से पहले और बाद में यहीं रहते हैं हम। हमको जब दफनाया जाएगा मिट्टी में मिलकर करेंगे हम पृथ्वी से प्रेम। कण-कण में समाने की यह एक विचित्र-यात्रा होगी। आग में जलकर बसेरा करेंगे आग में बनकर एक रंग और अपने अवशेषों के साथ जल में मिलकर हम एक दिन पुनः प्रवेश करेंगे हमारे प्रियजनों के भीतर। आग से लिए हुए रंगों के साथ हम सपनों के आकाश में खेलेंगे। हमारा आकाश होता है अपनों के भीतर। मरते नहीं हमारे भीतर से हमारे पूर्वज। वे लेते हैं प्राण-वायु हमारे साथ-साथ। वे धड़कते हैं हमारे दिलों में, वे दौड़ते हैं रक्त नलिकाओं में, वे दिन-रात देते हैं सोच को सहारा। भीतर के इस अंधकार में तथा बाहर की चमक-दमक में वे नजर भले ही न आए, किंतु जिनकी अंगुली थामी थी हमने वे हमारा साथ कभी नहीं छोड़ते। आत्महत्या से पहले यह याद रखना कि इस संसार में आने के बाद जाने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं... यहीं रहना है हमें अपना रंग-रूप या चोला बदल कर, तब जैसे हैं वैसे ही रहेंगे क्यों कि हमारे पूर्वज बनने का वह दिन हम नहीं जानते।
</Poem>