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00:01, 16 मई 2013 <poem>फैक्ट्री रा भूंगळा
मोटरां रा इंजन
अर दमघोटूं गैसां रो औतार
सांस लेवणो अबखो है किरतार।
काळो-काळो धूंवो
आंख्यां नैं आंधो
अर सरीर नैं मांदो कर रैयो है।
ऑक्सीजन बापड़ी
कम अर कम व्हैती जाय रैयी है।
नाक, सांस, फेफड़ा अर दिल
धुंवाड़ा री बिमारियां बधती जाय रैयी है।
रूंखड़ा काटतां
हाथ नीं धूजै
नवा पौध लगावा री बात माथै
सब अठी-उठी झांकै।
हरियाळी हरि रो दूजो नांव
अर रूंखड़ा में है जीवन रो वास
एक रूंख हरेक लगावो
रूंख जीवण री सांस है।
आओ! रूंख लगावां
रूंख है जीवण री सांस।</poem>