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00:35, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जब भी होता हूं मैं कवि
वह होती है साथ मेरे
आप उसे देखते हैं
या नहीं देखते
कह नहीं सकता....
कवि से हाल-चाल पूछने से बेहतर है
उसकी जेब से कलम निकाल कर देखना-
कितने शब्द जिंदा देख पाते हैं आप
धड़कते-धधकते हुए उसके आस-पास
जेब में कलम नहीं देखो तो सोचना-
वह छूट गई है किसी कविता के पास
कुछ पंक्तियां लिखते हुए
रह गई हैं शेष..
है वह कविता
जहां आप पहुंचते है खुद ही
मैं तो बस
लिखा करता हूं
कविता का पता।</poem>
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