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जंगल गाथा / अशोक चक्रधर

2,144 bytes added, 20:05, 19 जनवरी 2008
|रचनाकार=अशोक चक्रधर
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पानी से निकलकर<br>
मगरमच्छ किनारे पर आया,<br>
इशारे से<br>
बंदर को बुलाया.<br>
बंदर गुर्राया-<br>
खों खों, क्यों,<br>
तुम्हारी नजर में तो<br>
मेरा कलेजा है?<br><br>
 
मगर्मच्छ बोला-<br>
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने<br>
खास तुम्हारे लिये<br>
सिंघाड़े का अचार भेजा है.<br><br>
 
बंदर ने सोचा<br>
ये क्या घोटाला है,<br>
लगता है जंगल में<br>
चुनाव आने वाला है.<br>
लेकिन प्रकट में बोला-<br>
वाह!<br>
अचार, वो भी सिंघाड़े का,<br>
यानि तालाब के कबाड़े का!<br>
बड़ी ही दयावान<br>
तुम्हारी मादा है,<br>
लगता है शेर के खिलाफ़<br>
चुनाव लड़ने का इरादा है.<br><br>
 
कैसे जाना, कैसे जाना?<br>
ऐसे जाना, ऐसे जाना<br>
कि आजकल<br>
भ्रष्टाचार की नदी में<br>
नहाने के बाद<br>
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,<br>
वही तो मगरमच्छ है.<br>
 
 
२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)२०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)[[सदस्य:Pratishtha|प्रतिष्ठा]] २०:०५, १९ जनवरी २००८ (UTC)``
एक नन्हा मेमना<br>