{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>मैं कोटगेट से
अनेक बार निकला
पिता भी निकले थे
पिता के न रहने पर
मैंने अलग करते समय पत्तलें
अलग की एक पत्तल कोटगेट की ।
अब बतियाएंगे पिता
बीकानेर के चारों दरवाजों से
शायद लिखें पितावे
ब्राह्मण को दिए कागज-कलम से
कविता- कोटगेट की ।
</poem>