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01:10, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बंधे हमारे मन
सात फेरों के बाद...
मन का क्या!
बंध सकता है वह
बिना फेरों के भी।
नहीं बंधे तो
सारे बंधन बेमानी।</poem>
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