885 bytes added,
01:17, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>किसी अतीत में
कहीं पीछे छोड़ आए थे-
हम हमारा प्रेम!
कुछ कहना, कुछ सुनना
पूछना और कुछ बतलाना
इन औपचारिकताओं में
पता नहीं चला किस स्मृति के सहारे
बना कर अपना मार्ग
आ पहुंचा है प्रेम।
भूतकाल का प्रेम
लग रहा है- भूत
शायद वह चला जाए!
जाने से पहले
जान लो उसे
पहचानो
बस एक बार...
</poem>