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01:18, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारी घबराहट से
होने लगती है-
मुझे भी घबराहट।
हर मौसम का है
अपना एक रंग
घबराहट में बिखर कर
बदल जाते हैं रंग
अमूर्त चित्र में
दिखने लगती है-
कोई मूर्त छवि।</poem>
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