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01:20, 16 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>आती तो है खुशी
पर थम जाती है दूर कहीं
बिना मिले हीं....
आंखों में सावन
उफनती है नदी
अगले मौसम में उसे
पाता हूं- सूखी....
सागर पर लहर-सी आई तुम
मिलने से पहले उदासी थी
वह जरा टूटी ही थी
तुम्हारे जाने के बाद
फिर घेर लिया है मुझे उदासी ने।
लिख रहा हूं मैं-
प्रेम का स्थाई भाव
उदासी क्यों है...!</poem>