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अपने भीतर आग भरो कुछ, जिस से यह मुद्रा तो बदले।
इतने ऊँचे तापमान पर शब्द ठुठुरते ठिठुरते हैं तो कैसे,
शायद तुमने बाँध लिया है ख़ुद को छायाओं के भय से,
इस स्याही पीते जंगल में कोई चिनगारी तो उछले।
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