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बदली / कविता वाचक्नवी
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00:35, 10 जून 2013
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<poem>
'''बदली'''
आज फिर....?
मुट्ठी में बिजलियों की जलन
और अपनी चीत्कार से
कड़कडा़
कड़कड़ा
कर
भाल पटक
सीने में उमड़ी
घोर घटा श्यामल धुँआरी....।
चुपना न चाहता जी
चाहती
है मेटना
निज
मेटना
तड़पती और बरसती है
वह विवश
सिसक-सिसक
पत्थरों पर---।
</poem>
Kvachaknavee
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