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गोरैया / कविता वाचक्नवी
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00:40, 10 जून 2013
वर्तनी व फॉर्मेट सुधार
छोटी-सी गोरैया एक
खड़ी हो जाती है।
धूप समझती
चिड़िया के पंखों का विस्तार भी
मैं अभी
ठहर जाऊँ यदि-तब भी
और
डरती है धूप
मेरी छाया तक से भी।
</poem>
Kvachaknavee
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