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मदनाष्टक / रहीम

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शरद-निशि निशीथे चाँद की रोशनाई ।सघन वन निकुंजे वंशी बजाई ।।रति, पति, सुत, निद्रा, साइयाँ छोड़ भागी ।मदन-शिरसि भूय: क्‍या बला आन लागी ।।1।। कलित ललित माला या जवाहिर जड़ा था ।चपल चखन वाला चाँदनी में खड़ा था ।।कटि-तट बिच मेला पीत सेला नवेला ।अलि बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।2।। दृग छकित छबीली छैलरा की छरी थी ।मणि जटित रसीली माधुरी मूँदरी थी ।।अमल कमल ऐसा खूब से खूब देखा ।कहि सकत न जैसा श्‍याम का हस्‍त देखा ।।3।। कठिन कुटिल कारी देख दिलदार जुलफे ।अलि कलित बिहारी आपने जी की कुलफें ।।सकल शशिकला को रोशनी-हीन लेखौं ।अहह! ब्रजलला को किस तरह फेर देखौं ।।4।। ज़रद बसन-वाला गुल चमन देखता था ।झुक झुक मतवाला गावता रेखता था ।।श्रुति युग चपला से कुण्‍डलें झूमते थे ।नयन कर तमाशे मस्‍त ह्वै घूमते थे ।।5।। तरल तरनि सी हैं तीर सी नोकदारैं ।अमल कमल सी हैं दीर्घ हैं दिल बिदारैं ।।मधुर मधुप हेरैं माल मस्‍ती न राखें ।विलसति मन मेरे सुंदरी श्‍याम आँखें ।।6।। भुजंग जुग किधौं हैं काम कमनैत सोहैं ।नटवर! तव मोहैं बाँकुरी मान भौंहें ।।सुनु सखि! मृदु बानी बेदुरुस्‍ती अकिल में ।सरल सरल सानी कै गई सार दिल में ।।7।। पकरि परम प्‍यारे साँवरे को मिलाओ ।असल समृत प्‍याला क्‍यों न मुझको पिलाओ ।।इति वदति पठानी मनमथांगी विरागी ।मदन शिरसि भूय; क्‍या बला आन लागी ।।8।। १.फलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था .चपल चखन वाला चान्दनी में खड़ा था .।।कटि तट बिच मेला पीत सेला नवेला.नवेला।अली, बन अलबेला यार मेरा अकेला .।।9।।
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