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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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<poem>
एक बार की बात, चंद्रमा बोला अपनी माँ से
नंगे तन बारहों मास मैं यूँ ही घूमा करता
गर्मी, वर्षा, जाड़ा हरदम बड़े कष्ट से सहता."
 
माँ हँसकर बोली, सिर पर रख हाथ,
चूमकर मुखड़ा