|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
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{{KKCatKavita}}<poem> पहाड़ी के चारों तरफ<br>जतन से बिछाई हुई सुरंगों पर<br>जब लगा दिया गया हो पलीता<br>तो शिखर पर तनहा चढ़ते हुए इंसान को<br>कोई फर्क नहीं पड़ता<br>कि वह हारा या जीता।<br><br>
उसे पता है कि<br>वह भागेगा तब भी<br>टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा<br>और अविचल होने पर भी<br>तिनके की तरह बिखर जायेगा<br>उसे करना होता है<br>सिर्फ चुनाव<br>कि वह अविचल खड़ा होकर बिखर जाये<br>या शिखर पर चढ़ते-चढ़ते बिखरे-<br>टुकड़े-टुकड़े हो जाये।<br><br>