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यह लघु सरिता का बहता जल / गोपाल सिंह नेपाली
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20:35, 4 जुलाई 2013
यह लघु सरिता का बहता जल
उँचे
ऊँचे
शिखरों से उतर-उतर,
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर,
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर,
हिम के पत्थर वो पिघल पिघल,
बन
गये
गए
धरा का वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकलच
पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल,
अनिल जनविजय
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