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चिड़कली /अंकिता पुरोहित

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<poem>एक डाळी सूं
दूजी डाळी
भच्च कूदै चिड़कली
पकड़ै अर मारै फिड़कली।

आभै उडै
उतरै
काची डाळी
डरै नीं
डाळी रै तूटण सूं
उणनैं रैवै
पूरो विस्वास
आपरी आंख माथै
पांख माथै।

उडणो सिखावै मां
आंख-पांख
देन विधना री
पण
हूंस पाळै
खुद चिड़कली
उडै खुद, मारै फिड़कली
हूंस पाण उडै चिड़कली!</poem>
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