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चेतना पारीक कैसी हो ?पहले जैसी हो ?
कुछ-कुछ खुश
कुछ-कुछ उदास
कभी देखती तारे
कभी देखती घास
चेतना पारीक, कैसी दिखती हो ?अब भी कविता लिखती हो ?
तुम्हे मेरी याद न होगी
तुम्हारी याद उमड़ी है
चेतना पारीक, कैसी हो ?पहले जैसी हो ?आँखों में अब भी उतरती है किताब की आग ?नाटक में अब भी लेती हो भाग ?छूटे नहीं हैं लाइब्रेरी के चक्कर ?मुझ-से घुमंतू कवि से होती है टक्कर ?अब भी गाती हो गीत, बनाती हो चित्र ?अब भी तुम्हारे हैं बहुत-बहुत मित्र ?अब भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हो ?अब भी जिससे करती हो प्रेम उसे दाढ़ी रखाती हो ?चेतना पारीक, अब भी तुम नन्हीं सी गेंद-सी उल्लास से भरी हो ?उतनी ही हरी हो ?
उतना ही शोर है इस शहर में वैसा ही ट्रैफिक जाम है
देखता हूँ तुम्हारे आकार के बराबर जगह सूनी है
चेतना पारीक, कहाँ हो कैसी हो ?बोलो, बोलो, पहले जैसी हो ?
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