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भीड़ / रमेश भोजक ‘समीर’

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<poem>कूड़ है, सरासर कूड़
थूं कूड़ो है
सदा करै कूड़ी बातां
ऊभो भीड़ मांय
अर करै दावो
निरवाळै सोच रो
थनैं ठाह तो है
कै जिका भेळा होवै
भीड़ भेळै
वै कीं नीं सोचै
अर जिका कीं सोचै
वै कद बणै
हिस्सो भीड़ रो?</poem>
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