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<poem>म्हनैं ठाह है
भीड़ होवै-
गूंगी-बोळी
अर
बावळी!

सावळ
कोनी बोलै
कोनी सुणै
अर समझै तो दर नीं!
छव
म्हनैं ठाह है
सबदां रो मलम
आवै कोनी कोई काम
उण जगां
जठै हरिया होवै घाव
अर मुद्दो होवै गरम।</poem>
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