Changes

'| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> वह स...' के साथ नया पन्ना बनाया
| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>

वह सताता है दूर जा जा कर
रात में फिर क़रीब आ आ कर

याद कर सुब्ह से उसे कोयल
जाने क्या कह रही है गा गा कर

उसके दिल में है क्या वही जाने
गिफ़्ट देता है रोज़ ला ला कर

अपना रिश्ता जनम जनम तक है
चल न देना कहीं तू टा टा कर

चुप करायेगी माँ ही बच्चों को
देर से रो रहे हैं हा हा कर

माँ बचाती थी धूप, बारिश से
सर पे आँचल को मेरे छा छा कर

आख़िरश हो गया बहुत मग़रूर
चार दिन में, ख़िताब पा पा कर

कितने मरते हैं भूक से, कितने
साँड़ जैसे हुए हैं खा खा कर

दस्ते मुफ़लिस पे कुछ तो रखना सीख
कम, ज़ियादा भले हो, ना ना कर

कोई आता नहीं मदद को 'रक़ीब'
देखते सब हैं दर को वा वा कर
</poem>
384
edits