|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन
|संग्रह=
}}{{KKCatKavita}}जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>उस उस राही को धन्यवाद ।<br><brpoem>
जीवन अस्थिर अनजाने ही<br>हो जाता जिस जिससे पथ पर मेल कहीं<br>सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल<br>स्नेह मिलातय कर लेना कुछ खेल नहीं<br><br>उस उस राही को धन्यवाद।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते<br>जीवन अस्थिर अनजाने हीसम्मुख चलता हो जाता पथ का प्रमाद<br>पर मेल कहींजिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िलउस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>तय कर लेना कुछ खेल नहीं
साँसों पर अवलम्बित काया<br>जब चलतेदाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते चूर हुई<br>दो सम्मुख चलता पथ का प्रमादजिस जिससे पथ पर स्नेह-शब्द मिल गए, मिली<br>मिलानव स्फूर्ति थकावट दूर हुई<br><br>उस उस राही को धन्यवाद।
पथ के पहचाने छूट गए<br>साँसों पर साथअवलम्बित कायाजब चलते-साथ चल रही याद<br>चलते चूर हुईजिस जिससे पथ पर दो स्नेह मिला<br>-शब्द मिल गए, मिलीउस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>नव स्फूर्ति थकावट दूर हुई
जो साथ न मेरा दे पाए<br>पथ के पहचाने छूट गएउनसे कब सूनी हुई डगर<br>पर साथ-साथ चल रही यादमैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या<br>जिस जिससे पथ पर स्नेह मिलाउस उस राही मर लेकिन राह अमर<br><br>को धन्यवाद।
इस पथ पर वे ही चलते हैं<br>जो चलने का पा गए स्वाद<br>साथ न मेरा दे पाएउनसे कब सूनी हुई डगरजिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्याउस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>मर लेकिन राह अमर
कैसे चल पाता यदि न मिला<br>इस पथ पर वे ही चलते हैंहोता मुझको आकुल-अन्तर<br>जो चलने का पा गए स्वादकैसे चल पाता यदि मिलते<br>जिस जिससे पथ पर स्नेह मिलाचिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर<br><br>उस उस राही को धन्यवाद।
कैसे चल पाता यदि न मिलाहोता मुझको आकुल-अन्तरकैसे चल पाता यदि मिलतेचिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर आभारी हूँ मैं उन सबका<br>दे गए व्यथा का जो प्रसाद<br>जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>उस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>धन्यवाद।