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अभिमान / धनंजय वर्मा
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04:48, 13 अगस्त 2013
अभीसिप्त कुछ मिल जाता है
वसन्त की
अँघड़ाई
अँगड़ाई
में
कभी भी
यौवन की बाहें अनखुली नहीं रहीं ।
अनिल जनविजय
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