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अस्वीकरण
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उस रोज़ भी / अचल वाजपेयी
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,
03:40, 29 जून 2008
हिज्जे
उन स्वरों को छेड़ा
जो सदियों से मात्र
सम्वादी
संवादी
थे
पथरीले द्वारों पर
दस्तकों का होना भर था
वह न होने का
प्रारम्भ
प्रारंभ
था
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Sumitkumar kataria