600 bytes added,
09:36, 15 अगस्त 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ज़ख़्म सारे ही गये
तुम जो आकर सी गये
आस थी जितनी हमें
उससे बढ़कर जी गये
आज के बच्चे तमाम
शर्म धोकर पी गये
मसअला था इश्क़ का
हम वहाँ तक भी गये
तुमने पूछा ही नहीं
कब ‘सिकंदर’ जी गये
</poem>