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15:51, 27 अगस्त 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कामी शाह
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
इक नए मसअले से निकले हैं
ये जो कुछ रास्ते से निकले हैं
काग़ज़ी हैं ये जितने पैराहन
एक ही सिलसिले से निकले हैं
ले उड़ा है तिरा ख़याल हमें
और हम क़ाफ़िले से निकले हैं
याद रहते हैं अब जो काम हमें
ये उसे भूलने से निकले हैं
</poem>
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