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|रचनाकार=रति सक्सेना
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{{KKCatKavita}}
<poem>
1.
सुना तुमने?
पाहुने आए हैं तुम्हारे दरवाजे
और तुम
निसंग, उचाट, निपाट
यूँ ही बैठे रहोगे?
या फिर
तनिक पानी दोगे
देखो मेरे पाँव पड़पड़ा उठे हैं
धूल से
12.<br>नहीं, नहीं सुना तुमने?<br>पाहुने आए हैं तुम्हारे दरवाजे<br>या फिर सुन कर और तुम<br>कर दिया अनसुनानिसंग, उचाट, निपाट <br>उन्होंने॔"निपट पाहन जो होयदि हरी होती एक भी शिरायूँ ही बैठे रहोगे रहते क्यों इस तरह?<br>"मैंने गुस्से को नहीं रोकाया फिर <br>?तनिक पानी दोगे<br>आँधी का अट्टहासदेखो मेरे पाँव पड़पड़ा उठे हैं <br>कुछ बून्दें धूल से<br><br>"लेह में बरसातवह भी इस मौसम में?"
अचंभित थे लोग
बस मैं नहीं!
23.<br>समझ नहीं, <br>पा रहीनहीं सुना <br>इतने सवेरेया फिर सुन कर<br> किसने जड़ दिएकर दिया अनसुना<br>बेमौसन चुम्बनउन्होंने॔<br>तुम्हारे चेहरे पर"निपट पाहन जो हो<br>कल रात तो तुमयदि हरी होती एक भी शिरा<br>झक थे सफेद रुई की तरहबैठे रहते आज इतने नीले क्यों इस तरह?"<br>मैंने गुस्से को नहीं रोका<br>फिर ?<br>आँधी का अट्टहास<br>कुछ बून्दें <br>" लेह में बरसात<br>वह भी इस मौसम में?"<br><br>
अचंभित थे लोग<br>क्यों तुम्हारा चेहराबस मैं नहीं!<br><br>दिपदिपा गया हैगोम्फा में बैठे देवता की तरह
3.<br>तुमने कहाँ दी दावतसमझ नहीं पा रही<br>इतने सवेरे<br>किसने जड़ दिए<br>बेमौसन चुम्बन<br>मैंने ही डाल दिया डेरा तुम्हारे चेहरे पर<br>घर की दहलीज के भीतरकल रात अवधूतों, जरा चिलम तो तुम<br>झक थे सफेद रुई की तरह<br>आज इतने नीले क्यों??<br><br>बुझाओ
क्यों तुम्हारा चेहरा<br>4.दिपदिपा गया किसे थामे है<br>यह स्टीयरिंग या बाँसुरी?कार दौड़ रही हैतुम्हारी छाती परगीली धुन सीयहतुम्हे पूजता है पूजता है गोम्फा में मे बैठे देवता की तरह<br><br>सभी देवताओ कोफिर भी पहाड़ोंयह चालक, तुम्हारी सन्ततिधड़ल्ले से चढ़ा आ रहा हैतुम्हारे रोम रहित सीने पर
तुमने कहाँ दी दावत<br>मैंने ही डाल दिया डेरा <br>तुम्हारे घर की दहलीज के भीतर<br>अवधूतों, जरा चिलम तो बुझाओ<br><br>रोकोगे?
आज की साँझ
कौन पकाएगा खीर
खिलाएगा कौन?
मुस्कराओ नहीं
मैं कोई सुजाता नहीं
तुम चाहे लामा हो
अपने देवता के
45.<br>किसे थामे है यह <br>उसे पता नहीं स्टीयरिंग या बाँसुरी?<br>वह भिक्षुक हैकार दौड़ रही पता नहीं उसे कि वह लामा है<br>तुम्हारी छाती पर<br>फिर भीगीली धुन सी<br>लाल चोगे के नीचे से यह<br>लात चलाता हुआतुम्हे पूजता कुंगफुंग की मुद्रा मेंअपने साथी से खिलवाड़ करता है <br>पूजता तो वह बस गिलहरी होता है गोम्फा मे बैठे<br> सभी देवताओ को<br>कभी खरगोशफिर भी पहाड़ों<br>कभी चीता तो यह चालक , तुम्हारी सन्तति<br>धड़ल्ले कभी पेड़ की टहनी से चढ़ा आ रहा है<br>तुम्हारे रोम रहित सीने पर<br><br>झाँकता सूखा पत्ता
रोकोगे?<br><br>उस बचपन के कानों मेंफुसफुसाते हैं बड़े लोगलामा हो, लामा हो, लामा हो
आज घर का अन्तिम बच्चागोम्फा की साँझ<br>कौन पकाएगा खीर <br>खिलाएगा कौन?<br>मुस्कराओ नहीं<br>मैं कोई सुजाता नहीं<br>तुम चाहे लामा हो <br>अपने देवता के<br><br>भेंट चढ़ गया
6.
" इसे मून लैण्ड कहते हैं"
नवाँग छेरिंग कहता है
तो फिर चाँद वैसा नहीं जैसा कि
मुझे दिखता है?
उदयपुर की झील में
काँसे की थाली सा तैरता
नारियल के दरख्तों में
उलझा सा
बादलों से झगड़ता सा
5.<br>उसे पता नहीं <br>वह भिक्षुक है<br>पता नहीं उसे कि वह लामा है<br>तो फिर भी<br>लाल चोगे के नीचे से <br>ऐसा होगा चाँद? लात चलाता हुआ<br>सूखे भूरे कुंगफुंग की मुद्रा में<br>अपने साथी पहाड़ों से खिलवाड़ करता है<br>लटके लोथड़ों सातो वह बस गिलहरी होता है<br>कभी खरगोश<br>कभी चीता तो <br>कभी पेड़ की टहनी से<br>दरख्त सी खड़ी बाँबियों साझाँकता सूखा पत्ता <br><br>अनघड़ आकृतियों सा
उस बचपन के कानों में<br>कैसा भी हो, फुसफुसाते हैं बड़े लोग<br>कितना करीब आ गया है चाँदलामा हो, लामा हो, लामा हो<br><br>बिल्कुल मेरी एड़ी के नीचे
आज पहली बार लगा
कि मैं भी चाँद हूँ
भूसर लोथड़ों और
बाँबियों से सजी
घर का अन्तिम बच्चा<br>7.गोम्फा की भेंट चढ़ किस कदर घेरे बैठे हो अवधूतोंतनिक सरकोंदेखो मेरा दम घुट रहा हैबदन नीला हो गया<br><br>तुम्हारे उच्छ्वासों ने मुझे घुमा दिया है घाटी में भुनगे सातुम्हारे पेशानी पर बल क्यों?नीली नसें इतनी उभरी क्यों?देखा मैं बिखर गईबरफ बनतुम्हारे बदन परफिर मत कहना किइतनी जलन क्यों
जरा सरकों
रुक रही है मेरी साँस
फूँक तो मार दो
मेरे सीने में
68.<br>" इसे मून लैण्ड कहते हैंजुले"<br>नवाँग छेरिंग कहता वह कहती है<br>तो मुस्कुराट का दूसरा नाम होगा जुलेया फिर चाँद वैसा नहीं जैसा कि<br>मुझे दिखता है?<br>उदयपुर की झील बेहद कम में<br>सन्तोष काकाँसे की थाली सा तैरता<br>"जुले"नारियल शलजम , गाजर , सूखी खुबानी के दरख्तों में <br>बीचउलझा सा<br>बादलों से झगड़ता सा<br><br>जुले लाल हो उठा है
तो फिर <br>कोई छटपटाहट नहींऐसा होगा चाँद? <br>सब्जी बेचने कीसूखे भूरे <br>कोई जल्दबाजी नहींपहाड़ों से लटके लोथड़ों सा<br>पैसा कमाने कीदरख्त सी खड़ी बाँबियों सा<br>अनघड़ आकृतियों सा<br><br>न बिके सब्जी, "जुले" तो है
कैसा भी होउसने फिर कहा"जुले"इस बार सब बोल उठे पहाड़, <br>दिशाएँ, गोम्फाकितना करीब आ गया है चाँद<br>"जुले..जुले"मेरे होंठों ने कहा "जुले"बिल्कुल मेरी एड़ी के नीचे<br><br>जीभ ने कहा "जुले"मेरे गालों पर चिपक गईदेवता की मुस्कान
आज पहली बार लगा <br>कि मैं भी चाँद हूँ<br>भूसर लोथड़ों और<br>बाँबियों से सजी<br><br>जुले जुले
7.<br>किस कदर घेरे <br>बैठे हो अवधूतों<br>तनिक सरकों<br>देखो मेरा दम घुट रहा है<br>बदन नीला हो गया<br>तुम्हारे उच्छ्वासों ने मुझे <br>घुमा दिया है घाटी में भुनगे सा<br>तुम्हारे पेशानी पर बल क्यों?<br>नीली नसें इतनी उभरी क्यों?<br>देखा अब जब भी मैं बिखर गई<br>होती हूँ उदासबरफ बन<br>अपने आपसे कहती हूँतुम्हारे बदन पर<br>फिर मत कहना कि<br>इतनी जलन क्यों<br><br>जुले..जुले
जरा सरकों <br>9.रुक रही है मेरी साँस<br>मैंने दखल नहीं दी थीफूँक तो मार दो<br>दाखिल किया मुझेमेरे सीने में<br><br>तुम्हारे अपनों ने
उँचे और उँचे
चलते जाओ
मीठे और मीठे
बनते जाओ
शान्ति की चाहत है तो
कटते जाओ, कटते जाओ
जमीन से, बाजार से,
लोगों से,
8.<br>"जुले"<br>पहाड़ की चोटियों पर बनेवह कहती है<br>घौंसले से टंगे गोम्फा मुस्कुराट का दूसरा नाम होगा जुले<br>खींचते हैं मुझे या फिर बेहद कम पोत देते हैं रंग मिला मक्खनमेरे राक्षसी चेहरे परचीखते चिल्लाते लामाफैंक देते हैं घाटियों में सन्तोष का<br>"जुले"<br>मैं फिर से तैयार हूँशलजम , गाजर , सूखी खुबानी आदमजात बनने के बीच<br>लिए"फुसफुसा कर कहा था मुझ सेजुले लाल हो उठा है<br><br>लामायुरा की दानव मूर्ती ने॔
कोई छटपटाहट नहीं<br>मैं तैयार हूँ रंग के लिएसब्जी बेचने की<br>मक्खन के लिएकोई जल्दबाजी नहीं<br>पैसा कमाने की<br>न बिके सब्जी, "जुले" तो है<br><br>और ऊपर से नीचे फैंके जाने के लिए
उसने फिर कहा<br>ऊपर उठने के लिए जरुरी है" जुले"<br>इस बार सब बोल उठे <br>पहाड़, दिशाएँ, गोम्फा<br>"जुले..जुले"<br>मेरे होंठों ने कहा "जुले"<br>मेरी जीभ ने कहा "जुले"<br>मेरे गालों पर चिपक गई<br>देवता गिरने की मुस्कान<br><br>चोट पाना
जुले जुले<br><br>10.तुम?कब चली आई थार की गोद छोड़इन मलंगों के बीचपहाड़ों के हैंगर पर लटकी नीली चादर सीदिपदिपाता है तुम्हारा बदननीलम सापहाड़ी चुम्बनों सेनील हुआओ लावण्या!ठीक नहीं इतना लवण किछटपटा जाएँ मछलियाँदुख जाएँ आँखे
अब जब भी मैं होती हूँ उदास<br>पहाड़ी दवात मेंअपने आपसे कहती पेंगांग की स्याही मेंकलम डुबाभेजती हूँ<br>सन्देशसमन्दर कोसमन्दर! जाना नहीं रुकनाजुले..जुले<br><br>मेरे लिए रुकना दोस्त!
9.<br>उसकी आँखे मैंने दखल नहीं दी थी<br>नीले पानी मेंदाखिल किया मुझे<br>मरी मछली सी डुबडुबाने लगींतुम्हारे अपनों ने<br><br>कितना आसान होता हैमौत भूला पानाउतना ही, जितना कि किसी जिन्दा को भुलाना
उँचे और उँचे <br>चलते जाओ<br>मीठे और मीठे <br>बनते जाओ<br>शान्ति की चाहत कितना ठंडा है तो<br>कटते जाओ, कटते जाओ<br>पैंगाँग का पानीजमीन से, बाजार से,<br>मेरे डूबे पैर कहते हैंलोगों से, <br><br>बिल्कुल मौत सा
"पहाड़ की चोटियों पर बने<br>झील इस बार तुमघौंसले से टंगे गोम्फा<br> खींचते हैं मुझे <br>फिर पोत देते हैं <br>रंग मिला मक्खन<br>मेरे राक्षसी चेहरे पर<br>चीखते चिल्लाते लामा<br>फैंक देते हैं घाटियों में<br>मैं फिर से तैयार हूँ<br>आदमजात बनने के लिए"<br>फुसफुसा कर कहा था मुझ से<br>लामायुरा की दानव मूर्ती ने॔<br><br>इस कदर नमकीन मिली?
मैं तैयार हूँ रंग के लिए<br>मक्खन के लिए<br>और ऊपर से नीचे फैंके जाने के लिए<br><br> ऊपर उठने के लिए जरुरी है<br>गिरने की चोट पाना<br><br>  10.<br>तुम?<br>कब चली आई <br>थार की गोद छोड़<br>इन मलंगों के बीच<br>पहाड़ों के हैंगर पर लटकी <br>नीली चादर सी<br>दिपदिपाता है तुम्हारा बदन<br>नीलम सा<br>पहाड़ी चुम्बनों से<br>नील हुआ<br>ओ लावण्या!<br>ठीक नहीं इतना लवण कि<br>छटपटा जाएँ मछलियाँ<br>दुख जाएँ आँखे<br><br> मैं पहाड़ी दवात में<br>पेंगांग की स्याही में<br>कलम डुबा<br>भेजती हूँ सन्देश<br>समन्दर को<br>समन्दर! जाना नहीं रुकना<br>मेरे लिए रुकना दोस्त!<br><br> उसकी आँखे <br>नीले पानी में<br>मरी मछली सी डुबडुबाने लगीं<br>कितना आसान होता है<br>मौत भूला पाना<br>उतना ही, जितना कि <br>किसी जिन्दा को भुलाना<br><br> कितना ठंडा है पैंगाँग का पानी<br>मेरे डूबे पैर कहते हैं<br>बिल्कुल मौत सा<br><br> झील इस बार तुम<br>इस कदर नमकीन मिली?<br><br>  11.<br>कल बस <br>तुम और मैं<br>गहरी काली चादर के तले<br>तुम पहाड़ बने, बादल बने<br>फिर पंछी बन उड़ गए<br>मैं नदी बन तुम्हारी गोद में<br>सोती रही<br>तुम थे भी<br>नहीं भी<br>मैं तुम्हारे पेशानी पर चमकी<br>बून्द बन<br>फिर उड़ गई<br>भाप बन<br/poem>    7/21/2006