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|रचनाकार=रति सक्सेना
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आखिरी वक्त
जब हौंठों पर जमे शब्दों पर
सोच बुझने लगेगी थक कर
तब
ना कोई शिकायत निकलेगी
ना कोई प्रार्थना
आखिरी वक्त<br>जब हौंठों पर जमे शब्दों पर<br>सोच बुझने लगेगी थक कर<br>तब <br>ना कोई शिकायत निकलेगी<br>ना कोई प्रार्थना<br><br> इस प्रार्थना को<br>क्यों ना उठा कर रख दूँ<br>
आखिरी वक्त के लिए
</poem>