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अंकुरित सपने / रति सक्सेना

30 bytes removed, 12:40, 29 अगस्त 2013
|रचनाकार=रति सक्सेना
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<poem>
उसने कुछ सपने
मेरी हथेली पर रख
मुट्ठी बन्द कर दी
पसीजी मुट्ठी लिए
मैं देखने लगी सपने
बीजों में अंकुर
अंकुर में रेशा
रेशे में जड़
दो पत्तियों पर खड़ा हुआ
लहराता दरख्त
उसने कुछ सपने<br>मेरी हथेली पर रख<br>मुट्ठी बन्द कर दी<br>पसीजी मुट्ठी लिए<br>मैं देखने लगी सपने<br>बीजों में अंकुर<br>अंकुर में रेशा<br>रेशे में जड़<br>दो पत्तियों पर खड़ा हुआ<br>लहराता दरख्त<br><br> आँख खुली तो पाया<br>उनके हिस्से में खड़ा था<br>वही दरख्त<br>जिसे लगाया था मैंने<br>
अपने आँगन में
</poem>