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|रचनाकार=भगवतीचरण वर्मा
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मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
अपने प्रकाश की रेखा
तम के तट पर अंकित है
निःसीम नियति का लेखा
देने वाले को अब तकमैं कब से ढूँढ़ रहा देख नहीं पाया हूँ<br>अपने प्रकाश की रेखा<br>,तम के तट पर अंकित है<br>पल भर सुख भी देखानिःसीम नियति का लेखा<br><br>फिर पल भर दुख भी देखा।
देने वाले को अब तक<br>किस का आलोक गगन सेमैं देख नहीं पाया हूँ,<br>रवि शशि उडुगन बिखराते?पर पल भर सुख भी देखा<br>किस अंधकार को लेकरफिर पल भर दुख भी देखा ।<br><br>काले बादल घिर आते?
किस का आलोक गगन से<br>उस चित्रकार को अब तकरवि शशि उडुगन बिखराते?<br>मैं देख नहीं पाया हूँ,किस अंधकार पर देखा है चित्रों को लेकर<br>काले बादल घिर आते?<br><br>बन-बनकर मिट-मिट जाते।
उस चित्रकार को अब तक<br>मैं देख नहीं पाया हूँफिर उठना,<br>फिर गिर पड़नापर देखा आशा है चित्रों को<br>, वहीं निराशाबनक्या आदि-बनकर मिट-मिट जाते ।<br><br>अन्त संसृति काअभिलाषा ही अभिलाषा?
फिर उठनाअज्ञात देश से आना, फिर गिर पड़ना<br>आशा हैअज्ञात देश को जाना, वहीं निराशा<br>अज्ञात अरे क्या आदि-अन्त संसृति का<br>इतनीअभिलाषा ही अभिलाषाहै हम सब की परिभाषा?<br><br>
अज्ञात देश से आनापल-भर परिचित वन-उपवन,<br>अज्ञात देश को जानापरिचित है जग का प्रति कन,<br>अज्ञात अरे क्या इतनी<br>फिर पल में वहीं अपरिचितहै हम सब की परिभाषा ?<br><br>-तुम, सुख-सुषमा, जीवन।
पल-भर परिचित वन-उपवन,<br>परिचित है जग का प्रति कन,<br>फिर पल में वहीं अपरिचित<br>हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन ।<br><br> है क्या रहस्य बनने में ?<br>है कौन सत्य मिटने में ?<br>मेरे प्रकाश दिखला दो<br>मेरा भूला अपनापन ।<br><br/poem>
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