{{KKRachna
|रचनाकार=उदयप्रताप सिंह
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फूल से बोली कली क्यों व्यस्त मुरझाने में है
अपनी मनमोहक पंखुरियों की छटा क्यों खोल दी
तू स्वयं को बाँटता है जिस घडी घड़ी से तू खिला
किन्तु इस उपकार के बदले में तुझको क्या मिला
मुझको देखो मेरी सब ख़ुशबू मुझ ही में बंद है