|संग्रह=
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<poem>
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी
बाँध देती है
तुम्हारा मन, हमारा मन,
फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-
डूबन
मिलती मुझे राहत बड़ी!
प्रार्थना प्रात सद्य:स्नातकन्धों पर बिखेरे केशआँसुओं में ज्योंधुला वैराग्य का सन्देशचूमती रह-रहबदन को अर्चना की एक अनदेखी कड़ी<br>धूपबाँध देती है<br>यह सरल निष्कामपूजा-सा तुम्हारा मनरूपजी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में, हमारा मन,<br>यदि मुझेफिर किसी अनजान आशीर्वाद मिलती रहेकाले तमस् की छाँह में-<br>डूबन<br>ज्योति की यह एक अति पावन घड़ी!मिलती मुझे राहत बड़ी प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी!<br><br>
प्रात सद्य:स्नात<br>कन्धों पर बिखेरे केश<br>आँसुओं में ज्यों<br>धुला वैराग्य का सन्देश<br>चूमती रह-रह<br>बदन को अर्चना की धूप<br>यह सरल निष्काम<br>पूजा-सा तुम्हारा रूप<br>जी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में, यदि मुझे<br>मिलती रहे<br>काले तमस् की छाँह में<br>ज्योति की यह एक अति पावन घड़ी !<br>प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी !<br><br> चरण वे जो<br>लक्ष्य तक चलने नहीं पाये<br>वे समर्पण जो न<br>होठों तक कभी आये<br>कामनाएँ वे नहीं<br>जो हो सकीं पूरी-<br>घुटन, अकुलाहट,<br>विवशता, दर्द, मजबूरी-<br>जन्म-जन्मों की अधूरी साधना, पूर्ण होती है<br>किसी मधु-देवता<br>की बाँह में !<br>ज़िन्दगी में जो सदा झूठी पड़ी-<br>प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी !</poem>