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18:32, 3 नवम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=
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संसार की हर शैय का इतना ही फ़साना है
इक धुन्ध से आना है, इक धुन्ध में जाना है
:::::यह राह कहाँ से है यह राह कहाँ तक है
:::::यह राज़ कोई राही समझा है, न जाना है
एक पल की पलक पर है, ठहरी हुई यह दुनिया
एक पलक झपकने तक हर खेल सुहाना है
:::::क्या जाने कोई किस पर, किस मोड़ पर क्या बीते
:::::इस राह में ऎ राही हर मोड़ बहाना है
हम लोग खिलौना हैं एक ऎसे खिलाड़ी का
जिस को अभी सदियों तक यह खेल रचाना है