1,418 bytes added,
19:32, 3 नवम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=
}}
जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्यार को प्यार मिला ?
हमने तो जब कलियाँ मांगीं, काँटों का हार मिला ॥
खुशियों की मंज़िल ढूंढी तो ग़म की गर्द मिली
चाहत के नग़में चाहे तो आहें सर्द मिलीं
दिल के बोझ को दूना कर गया, जो ग़म्ख़्वार मिला
बिछड़ गया हर साथी दे कर, पल-दो-पल का साथ
किसको फ़ुरसत है जो थामे, दीवानों का हाथ
हम को अपना साया तक अक्सर बेज़ार मिला
इसको ही जीना कहते हैं तो यूँ ही जी लेंगे
उफ़ न करेंगे, लब सीलेंगे, आँसू पी लेंगे
ग़म से अब घबराना कैसा, ग़म सौ बार मिला
जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला ?